Friday, April 8, 2016

भारत देश - कोशिश है आगे बढ़ने की या फिर शर्मसार होने की

भारत देश - कोशिश है आगे बढ़ने की या फिर शर्मसार होने की 

आजादी पाने को, सैलाब उमड़ आया है।
कोशिश है कुछ कर जाने की, देश प्रेम पनप आया है।।

बंटवारा किया है पहले, अब सब कहते हम एक हैं।
गांधी और नेहरू के नारे भी अब बिलकुल फ़ैल हैं।।

आज आजाद देश के,  जयकारे में खलल आया है।
हिन्दुस्तान और पाकिस्तानं, देश में पनप आया है।।

बैलगाड़ी से रेलगाड़ी तक, तेज नज़र आता है।
ओड - इवन का खेल अब, नेताओं  को खूब भाता है।।

भूखे-नंगे की खबर लेने को, विदेशियों का लगा है तांता ।
इसी बीच देश के लुटेरों ने ली , जा के उन्ही की  शरणां ।।

भ्रष्ट हो रहे नेता और विधायक, लगी देश को बुरी किसी की आँख।
ले रहे वह वेतन मासिक, और वो भी दो - दो लाख।।

अपने - अपने N G O खोल  कर , उद्योगपति  हैं कर रहे व्यापार।
टैक्स सेव करने की इससे बड़ी क्या हो मार, अब क्यों ना हो देश मेरा लाचार।।

पढ़े लिखे अनपढ़ों को, देखा जा सकता है अक्सर।
सरकारी दफ्तरों में चपरासी बन गए बाबू, और बाबू बन गए हैं  अफसर।।

मानव - मानव को, खाने के लिए हो रहा उतारू।
भूखे को अनाज नहीं, अब कपड़े  क्या उतारूँ।।

पढ़े लिखे हैं घूम रहे, और बन रहे देश के द्रोही।
ऐसा ही रहा तो देश में बनते रहेंगे, लड़ाकू विमान - टोही।।

बलिदानी सब चले गए, देश को अपनी आहुति देकर।
अब अरबपति हैं  गए , देश का पैसा खाकर - लेकर।।

यह मेरा भारत है, भारत माता की हैं सब संतान।
यह सब देख अब तो , कबीर और रहीम भी हो गए होंगे हैरान।।

आ जाओ हनुमान, जीसस, अल्लाह और भगवान।
शिक्षा की जरुरत आन  पड़ी है, देख लीजिए इंसान।।

नोट - कविता का उद्देश्य किसी धर्म या व्यक्ति विशेष को सम्बोधित करना नहीं है। 

पाठकों से सुझाव और टिप्पणी आपेक्षित है।

लेखक , प्रवीण त्रिपाठी